Kaun Pravin Tambe Review: श्रेयस तलपड़े इकबाल हैं या प्रवीण ताम्बे?


Kaun Pravin Tambe Hindi Review: एक हीरो की तलाश हम सभी को होती है. शायद इसलिए कि हम किसी को देख का प्रभावित हो सकें, उसका अनुसरण कर सकें, उसको सबसे ऊपर का दर्जा दे कर उसका गुणगान कर सकें. लेकिन प्रवीण ताम्बे? कौन प्रवीण ताम्बे (Kaun Pravin Tambe)? फिल्म का नाम सुन कर भारतीय क्रिकेट या आईपीएल के चाहने वाले तो फिर भी थोड़ा पहचान जाएं, लेकिन आम दर्शक के लिए फिल्म का ये टाइटल सच में सही ही माना जा सकता है. कौन है ये प्रवीण ताम्बे? इसका नाम भी नहीं सुना. ये कोई हीरो तो है नहीं जो इसका नाम याद रखा जाए. सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली (Virat Kohli) या रोहित शर्मा (Rohit Sharma) जैसे क्रिकेटर हमारे हीरो होते हैं. थोड़े पुराने गिन लें तो सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और अगर ताज़ा ताज़ा “83” फिल्म देखी हो तो कपिल देव (Kapil Dev). मगर ये प्रवीण ताम्बे कौन है? ये एक ऐसा हीरो है जिसकी ज़िन्दगी से सीखने को इतना कुछ है कि शायद ही किसी स्पोर्ट्स हीरो की ज़िन्दगी में मिले.

डिज्नी+हॉटस्टार पर रिलीज फिल्म “कौन प्रवीण ताम्बे” एक ऐसे अजूबे, एक ऐसे हीरे की कहानी है जिसको देखना तो अपने आप में एक सुखद अनुभव है ही लेकिन जिस पर एक पूरी फिल्म बनाना, मनुष्य की अदम्य शक्ति को कोटि कोटि प्रणाम करने के बराबर है. ये फिल्म, अन्य स्पोर्ट्स बायोपिक की ही तरह है लेकिन इसका हीरो किसी और स्पोर्ट्स हीरो की तरह नहीं है. और सबसे अच्छी बात, प्रवीण ताम्बे तो आज भी उसी शिद्दत से क्रिकेट खेलते हैं और कई कई पीढ़ियों के लिए एक मिसाल हैं. फिल्म खुद भी देखिये और अपने बच्चों को भी दिखाइए जो एक एग्जाम में फेल होने पर आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने का सोचने लगते हैं.

प्रवीण ताम्बे एक क्रिकेटर हैं. ज़िन्दगी की जद्दोजहद और गरीबी के बावजूद ये शख्स एक सपना लेकर चल रहा था. कभी न कभी रणजी ट्रॉफी तो खेलूंगा. किस्मत कुछ ऐसी थी कि अभावों के दावानल उसके इस सपने को बार बार जलाने के लिए आ जाते थे. गली का क्रिकेट खेलने वाला, टेनिस बॉल क्रिकेट टूर्नामेंट में मीडियम पेस गेंदबाज़ी करने वाला प्रवीण ताम्बे, क्रिकेट के लिए सब कुछ छोड़ देता था लेकिन इसकी किस्मत का सितारा कभी चमकता ही नहीं था. कभी उसकी गरीबी आड़े आती तो कभी उसकी बढ़ती उम्र. लेकिन सपना तो सपना होता है, वो भी जागती आँखों का सपना. इस खिलाडी ने क्रिकेट खेलने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया. कभी नौकरी का फ़र्ज़ी सर्टिफिकेट दिखाया तो कभी डायमंड पॉलिशिंग कंपनी में हीरे काटने का का काम किया और कभी तो एक बार में वेटर तक का काम कर लिया लेकिन क्रिकेट में रणजी ट्रॉफी खेलने का सपना नहीं छोड़ा. 41 साल की उम्र में गिने चुने लोग ही क्रिकेट खेलते हुए नज़र आये हैं, उस उम्र में प्रवीण को भारत के सबसे भरोसेमंद क्रिकेटर राहुल द्रविड़ ने आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स के लिए खेलने के लिए बुलाया. उसके बाद प्रवीण ने अपनी गेंदबाजी और फिटनेस के दम पर दुनिया भर के क्रिकेटर्स को चौंका दिया. ये फिल्म उस माद्दे की कहानी है जिसने मुंबई के बहुत ही साधारण इलाके में साधारण से परिवार में जन्मे प्रवीण ताम्बे को क्रिकेट की ऐसी ऊंचाइयों पर पहुंचाया जहां वो 50 की उम्र में भी क्रिकेट खेलते हैं और अपने पर बनी हुई फिल्म को देख कर इसलिए रोते हैं कि उन्होंने अपना सपना साकार होते हुए देख लिया है.

गजब की फिल्म है कौन प्रवीण तांबे
क्या ग़ज़ब की फिल्म है. किरण यज्ञोपवीत की कलम से रची गयी प्रवीण ताम्बे की इस कहानी को दर्शक इसलिए देख सकते हैं कि कैसे एक शख्स जिसके पास संसाधनों के नाम पर एक पूरा कमरा भी नहीं था, टीन की शीट्स लगा कर उसे कमरे की शक्ल दी गयी थी और वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ वहां रहता था. चाल की ज़िन्दगी में किरण ने बहुत ही सुन्दर तरीके से रोशनदान बनाया है जहाँ से रौशनी आती है और थोड़ी हवा भी, जहाँ सपने का दम नहीं घुटता. किरण एक अनुभवी लेखक हैं, और उसके द्वारा निर्देशित फिल्म तार्यांचे बैत, एक अत्यंत साधारण परिवार के बच्चे की फाइव स्टार होटल में एक रात रुकने की इच्छापूर्ती के लिए पूरे परिवार के संघर्ष की मार्मिक कथा है. इस बायोपिक को कहीं भी ओवर ड्रामेटिक न होने देने की उनकी ज़िद ने कहानी को अत्यंत विश्वसनीय बनाया है. उनकी इस कहानी को परदे पर उतारा है निर्देशक जयप्रद देसाई ने.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Bollywood, Film review





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